Pahadon par kaun nahin jaata . Kabhie maidanon ki bheesan garmi se nizaat pane ke liye to kabhi barf ke girte phaahon ke beech apne dil ko thodi thandak pahuchane. Pahadon par guzari koyi subah ya khushnuma sa din to shayad hum sab ke khayalon mein ho. Par pahadon par guzari raat ka anand lena ho to Gulzaar ki is poori nazm ko padhein neeche di huyi link par
रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है
रात पहाड़ों पर कुछ और ही होती है
Waise meri aawaaz mein ise sunna chahein to yahan sun sakte hain.
एक शाम मेरे नाम पर गुलज़ार की पसंदीदा नज़्में
- कैसे देखते हैं गुलज़ार 'बारिश' को अपनी नज़्मों में... (Barish aur Gulzar)
- रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा मैंने
- बहुत दिन हो गए सच्ची तेरी आवाज़ की बौछार में भींगा नहीं हूँ मैं
- पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाजी देखी मैंने
- बस एक लमहे का झगड़ा था
- तेरे उतारे हुए दिन टँगे है लॉन में अब तक
- मोड़ पर देखा है वह बूढ़ा सा इक पेड़ कभी
- शहतूत की शाख पे बैठी मीना बुनती है रेशम के धागे